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________________ ततीय अध्याय (कर्म सिद्धान्त) ३/१ चुतः श्रेणी बन्ध अधिकार (१. मूलोत्तर प्रकृति परिचय) (१) जीव के कितने भेद हैं ? दो हैं- संसारी व मुक्त ।। (२) संसारी जीव किसको कहते हैं ? __कर्म सहित जीव को संसारी जीव कहते हैं। (३) मुक्त जीव किसे कहते हैं ? कर्म रहित जीव को मुक्त जीव कहते हैं। (४) कर्म किसको कहते हैं ? जीव के रागद्वेषादि परिणामों के निमित्त से कार्माण वर्गणा रूप जो पुद्गल स्कन्ध जीव के साथ बन्ध को प्राप्त होते हैं, उन्हें कर्म कहते हैं। ५. कर्म कितने प्रकार का होता ह ? तीन प्रकार का भाव कर्म, नोकर्म व द्रव्य बन्ध । ६. भाव कम किसे कहते हैं ? जीव के रागद्वेषात्य परिणाम को भाव कर्म कहते हैं। ७. नोकर्म किसे कहते हैं ? जीव के पंचभौतिक बाह्य शरीर को नोकर्म कहते हैं, अथवा लोक के सभी दृष्ट पदार्थ नोकर्म हैं, क्योंकि वे सभी किसी न किसी जीव के मृत शरीर ही हैं; जैसे चौको वनस्पति कायिक जीव का मृत शरीर है और स्वर्ण पृथिवी कायिक का।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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