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________________ ३-कर्म सिद्धान्त १७७ १-बन्धाधिकार (१५) ज्ञानावरणीय कर्म (प्रकृति) किसको कहते हैं ? जो कर्म आत्मा के ज्ञान गुण को घाते उसको ज्ञानावरण कर्म कहते हैं। १६. ज्ञान गुण का घातना क्या ? ज्ञान की शक्ति एक समय में समस्त लोकालोक को सर्व द्रव्य गुण पर्याय समेत जान लेने की है। उसे घटा कर तुच्छ मात्र कर देना, जिससे कि वह अल्प मात्र ही जानने को समर्थ हो सके, यह ही ज्ञान गुण का घात है। (१७) ज्ञानावरण के कितने भेद हैं ? पांच हैं-मतिज्ञानावरण, श्रुत ज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यय ज्ञानावरण और केवल ज्ञानावरण । १८. मति ज्ञानावरण आदि किन्हें कहते हैं ? उस उस जाति के ज्ञान को घातने से उस उस नाम का है। (१६) दर्शनावरण कर्म किसे कहते हैं ? जो आत्मा के दर्शन गुण को घाते उसे दर्शनावरण कर्म कहते हैं। २०. दर्शन गुण का घात क्या? ज्ञान गुण की भांति उसकी शक्ति को घटाकर तुच्छ मात्र कर देना ही उसका घात है। (२१) दर्शनावरण कर्म के कितने भेद हैं ? नव हैं-चक्षु दर्शनावरण, अचक्षु दर्शनावरण, अवधि-दर्शना वरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला प्रचला स्त्यानगृद्धि। २२. चक्षु दर्शनावरणीय आदि किन्हें कहते हैं ? । उस उस जाति के दर्शन को घातने से उस उस नाम का कर्म है। २३. निद्रा आदि पांच भेवों के लक्षण करो ? थकावट से सर भारी होना, तथा आधे सोने व आधे जागते रहना 'निद्रा' है । पुनः पुनः निद्रा में प्रवृत्ति अथवा अति निर्भर
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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