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________________ ५७. २-व्रज्य गुण पर्याय १७४ ६-अन्य विषयाधिकार स्कन्धों व मनुष्यादि की गमनागमन क्रिया रूप विभाव द्रव्य पर्याय और दोनों द्रव्यों के गणों को विभाव अर्थ पर्याय । ५६. विशेष कार्य में किस प्रकार का निमित्त चाहिये ? साधारण व असाधारण दोनों। क्या विभाव पर्याय बिना असाधारण निमित्त के होती है ? नहीं, क्योंकि क्योंकि विभाव या अशुद्ध नाम ही संयोगका है। संयोगी कार्य बिना संयोग या बाह्य निमित्त के हो जावे सो असम्भव है। ५८. क्या स्वाभाविक पर्याय को भी असाधारण निमित्त चाहिये? नहीं; स्वाभाविक कार्य केवल अपनी शक्ति से होता है, क्योंकि स्वभाव कहते ही उसे हैं जिसमें अन्य की अपेक्षा न हो। निमित्त रूप से वहां काल या धर्मास्तिकाय साधारण निमित्त होते हैं। असाधारण निमित्त कोई नहीं होता। ५६. शुद्ध व अशुद्ध सभी कार्यों को असाधारण निमित्त निरपेक्ष बताने में क्या भूल है ? तहां दृष्टि में तो शुद्ध पर्याय या सामान्य बैठा रहता है और बातें की जाती हैं अशुद्ध पर्यायों की। सो घटित नहीं होता, प्रत्यक्ष विरोध आता है। ६०. स्कन्ध के प्रत्येक परमाणु का स्वतन्त्र परिणमन मानने में क्या दोष ? दृष्टि में तो परमाणु रहता है और स्कन्ध की बात की जाती है, जो घटित नहीं होता। दूसरी बात यह है कि संश्लेष बन्ध की अवस्था में परमाणु की स्वतंत्रता रह नहीं जाती। क्योंकि बन्ध को प्राप्त दो द्रव्य विजातीय रूप परिणत हो जाते हैं। बिना पैट्रोल केवल क्रियावती शक्ति से मोटर चले, क्या दोष? मोटर स्वयं कोई शुद्ध द्रव्य नहीं । जिस प्रकार शुद्ध होने से परमाणु असाधारण निमित्त के बिना भी स्वयं गमन व परिणमन कर सकता है, उस प्रकार कोई भी स्कन्ध नहीं कर सकता। ६१.
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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