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________________ १७० २-म्य गुण पर्याय ६-अन्य विषयाधिकार कपाटाकार भी सुकड़ कर दण्डाकार और आठवें समय में वह दण्डाकार भी सिमटकर मूल शरीर में समा जाता है। इस प्रकार केवली समुद्धात में कुल आठ समय लगते हैं। (३. कारण कार्य) (२७) कारण किसे कहते हैं ? कार्य की उत्पादक सामग्री को कारण कहते हैं। . २८ उत्पादक सामग्री से क्या समझे ? जिन पदार्थों की सहायता से कार्य उत्पन्न हो उन्हें उत्पादक कहते हैं। (२६) कारण के कितने भेद हैं ? दो हैं-एक समर्थ कारण दूसरा असमर्थ कारण । (३०) समर्थ कारण किसे कहते हैं ? प्रतिबन्धक का अभाव होने पर सहकारी समस्त सामग्रियों के सद्भाव को समर्थ कारण कहते हैं। समर्थ कारण के होने पर अनन्तर (अगले ही क्षण) कार्य की उत्पत्ति नियम से होती है । (३१) असमर्थ कारण किसे कहते हैं ? भिन्न भिन्न प्रत्येक सामग्री को असमर्थ कारण कहते हैं । असमर्थ कारण कार्य का नियामक नहीं (अर्थात इसके होने पर कार्य हो अथवा न भी हो)। ३२. प्रतिबन्धक का अभाव व सहकारी का सद्भाव क्या? किसी भी कार्य की उत्पत्ति के लिये दो बातें आवश्यक हैं। विघ्नकारी कारणों का अभाव और सहायक कारणों का सद्भाव, दोनों में से एक शर्त भी पूरी न हो तो कार्य होना सम्भव नहीं। दो शर्तों के पूरी होने पर ही कार्य होता है। दोनों शर्तों का होना ही समर्थ कारण है। (३३) सहकारी सामग्री के कितने भेद हैं ? दो हैं - एक निमित्त दूसरा उपादान ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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