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________________ २-त्रव्य गुण पर्याय १६८ ६-अन्य विषयाधिकार देना वैक्रियक समुद्धात कहलाता है । यह अग्नि व वायु कायिक जीवों में तथा विद्याधरों में किसी किसी को अथवा विक्रिया ऋद्धिधारी साधुओं में होता है। २२. तेजस समुद्धात क्या है व किसे होता है ? यह दो प्रकार का होता है-शुभ तैजस व अशुभ तैजस । किसी मुनि को कदाचित तीव्र क्रोध आ जाने पर उसके बायें कन्धे से एक तेजोमय पुतला निकलकर अपने विरोधी व्यक्ति या पदार्थ को भस्म करके लौट आता है, तथा उस मुनि को भी अपने तेज से भस्म कर देता है। यह अशुभ तेजस है। किसी मुनि को कदाचित करुणा उत्पन्न होने पर उसके दायें कन्धे से एक तेजोमय पुतला निकलकर लक्ष्य व्यक्ति या देश आदि का कष्ट रोग अथवा दुर्भिक्षादि निवारण कर वापस लौट आता है, और शरीर में प्रवेश कर जाता है। यह मुनि को भस्म नहीं करता। यह शुभ तैजस है। ये दोनों किसी किसी ऋद्धिधारी मुनि को ही होते हैं । २३. आहारक समुद्धात क्या है और किसे होता है ? किसी मुनि को कदाचित तत्वों में शंका होने पर या तीर्थकर देव के दर्शनों की उत्कण्ठा होने पर उसके मस्तक एक हाथ प्रमाण धवल पुरुषाकार पुतला निकलता है और तीर्थंकर, केवली या श्रुतकेवलीका वे जहां कहीं भी स्थित हो स्पर्श करके लौट आता है। इतने मात्र से ही उसकी शंका आदि निवृत्त हो जाती हैं । इसे आहारक समुद्धात कहते हैं और किसी किसी महान ऋद्धिधारी मुनि को ही होता है । २४. केवली समुद्धात क्या व किसे होता है ? किसी किसी अर्हन्त केवली भगवन्त की आयु के अन्तिम क्षण में कदाचित उनके प्रदेश फैलकर समस्त लोकाकाश में व्याप्त हो जाते हैं; और पुनः लौटकर शरीर में समा जाते हैं । इसे
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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