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________________ २- द्रव्य गुण पर्याय १४५ २४२ प्रवृत्ति को योग क्यों कहते हैं ? क्योंकि प्रवृत्ति मन वचन व काय की हलन चलन क्रिया रूप होती है । ( द्रव्य व भाव योग के लिये देखो अध्याय ४ अधिकार २) ( २४३) उपयोग किसे कहते हैं ? ४-जीव गुणाधिकार क्षयोपशम के हेतु से चेतना के परिणाम ( या परिणति ) विशेष को उपयोग कहते हैं । २४४ उपयोग कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का - दर्शनोपयोग व ज्ञानोपयोग । अथवा तीन प्रकार का - शुभोपयोग, अशुभोपयोग और शुद्धोपयोग । २४५. शुभोपयोग किसे कहते हैं ? चेतन के पुण्यात्मक परिणामों को या परिणति को कहते हैं । २४६. अशुभोपयोग किसे कहते हैं ? चेतन के पापात्मक परिणामों को या परिणति को कहते हैं । २४७ शुद्धापयोग किसे कहते हैं ? चेतन के ज्ञाता दृष्टा रूप वीतराग व साम्य परिणामों को या परिणति को कहते हैं । २४८. योग व उपयोग में क्या अन्तर है ? योग का सम्बन्ध जीव के प्रदेशों के साथ होने से वह द्रव्यात्मक है और उपयोग का सम्बन्ध जीव के चेतन भाव के साथ होने से वह भावात्मक है । योग में परिस्पन्दन या हलन डुलन रूप प्रवृत्ति होती है और उपयोग में भावों की परिणति । २४६. प्रवृत्ति व परिणति में क्या अन्तर है ? प्रवृत्ति क्रिया या परिस्पन्दन रूप होती है अर्थात हलन डुलन रूप होती है और परिणति केवल परिणमन रूप होती है अर्थात भावों की शक्ति मैं तरतमता रूप होती है । प्रवृत्ति कराना क्रियावती शक्ति का काम है और परिणति कराना
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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