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________________ १४४ २-प्रव्य गुण पर्याय ४-जीवगुणाधिकार २३४. द्रव्येन्द्रिय व भावेन्द्रिय में क्या अन्तर है ? 'द्रव्येन्द्रिय' शरीर में अथवा आत्म प्रदेशों में नेत्रादि ही आकार रचना है, और भवेन्द्रिय उन नेत्रादि गोलकों में जानने देखने की चेतना शक्ति या उपयोग । इनके भेद प्रभेदादि का विस्तार आगे अध्याय ४ में दिया है। २३५. बल प्राण किसे कहते हैं ? मन, वचन, काय द्वारा प्रवृत्ति करने की चेतन शक्ति को बलप्राण कहते हैं। इसी का दूसरा नाम योग है। (२३६) बल प्राण के कितने भेद हैं ? तीन हैं-मनोबल, वचनबल, कायबल । (१५. योग व उपयोग) (२३७) योग किसे कहते हैं ? मन, वचन व काय के निमित्त से आत्मा के प्रदेशों में हलन चलन होने को योग कहते हैं । २३८. योग के कितने भेद हैं ? तीन भेद हैं-मन, वचन व काय । अथवा दो हैं-शभ व अशुभ । २३६. प्रदेश कम्पन तो एक ही प्रकार का होता है, फिर तीन भेद क्यों ? वास्तव में योग एक ही है, पर निमित्तों की अपेक्षा ये तीन भेद करके बताया जाता है। मन के निमित्त से हो तो वही परिस्पन्दन मनोयोग कहलाता है और वचन व काय के निमित्त से हो तो वचन व काय योग कहलाता है। २४०. शुभ योग किसे कहते हैं ? मन वचन व काय की पुण्यात्मक प्रवृत्ति को शुभ योग कहते २४१. अशुभ योग किसे कहते हैं ? मन वचन काय की पापात्मक प्रवृत्ति को अशुभ योग कहते हैं।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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