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________________ २-प्रव्य गुण पर्याय १४६ ३-जीव गुणाधिकार भाववति शक्ति का। प्रवृत्ति द्रव्य या व्यंजन पर्याय है और परिणति भाव या अर्थ पर्याय । २५०. उपयोग की भांति योग के भेदों में भी शुद्धोपयोग क्यों नहीं कहा? योग अशुद्ध ही होता है शुद्ध नहीं, क्योंकि मन वचन काय के निमित्त बिना स्वतंत्र नहीं होता। ज्ञाता दृष्टा भाव बिना किसी निमित्त के अथवा सर्व निमित्तों का अभाव हो जाने पर स्वभाव से होता है । पर का संयोग न हो उसे ही शुद्ध कहते हैं । इसलिये उपयोग में ही शुद्धपना सम्भव है योग में नहीं। २५१. मोक्ष मार्ग में योग व उपयोग का सार्थक्य दर्शाओ। सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र रूप रत्नत्रय मोक्ष मार्ग है। तहां सम्यग्दर्शन व ज्ञान उपयोग रूप है और सम्यग्चारित्र योग रूप। २५२. समता रूप भाव को चारित्र कहा है, वह तो उपयोग है। वास्तव में अशुभ से हटकर शुभ में प्रवृत्ति करने तक ही चारित्र रहता है, इसके आगे प्रयत्न का अभाव हो जाने से चारित्र का भी अभाव हो जाता है । भूतपूर्व नय के उपचार से ही वहां चारित्न कहा जाता है। समता रूप वह स्थान सर्वथा शुद्धोपयोग रूप होता है, अतः वहां परिणति होती है प्रवृत्ति या योग नहीं। २५३. कषाय भाव योग रूप हैं या उपयोग रूप ? भावात्मक होने से वह उपयोग रूप है योग रूप नहीं, क्योंकि उसमें प्रवृत्ति नहीं अन्तरंग परिणति ही होती है। २५४. कषाय, लेश्या व वासना का स्वरूप दर्शाओ। (देखो आगे अध्याय ४ में प्रथम अधिकार) (१६. क्रियावती व भाववती शक्ति) २५५. शक्ति किसे कहते हैं ? गुण की भांति जो हर समय पर्याय या व्यक्ति रूप न रहती
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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