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________________ २-न्य गुण पर्याय १३० ४-जीव गृणाधिकार १४०. सविकल्पक निर्विकल्प से क्या समझे? ज्ञान में ज्ञेयों के आकार प्रत्यक्ष होते हैं, इसलिये सविकल्पक हैं। 'मैं इस पदार्थ को जानू' इस प्रकार का विकल्प नहीं होता इसलिये निर्विकल्प है। १४१. केवल ज्ञानी निश्चय से आत्मा को जानते हैं, व्यवहार से जगत को भी जानते हैं । क्या समझे ? केवल ज्ञान में समस्त पदार्थ ज्ञेयाकार रूप से प्रतिभासित मात्र होते हैं। दर्पण की भांति वह प्रतिभास उसका निज रूप है. ज्ञय पदार्थों का रूप नहीं है। इसलिये वे वास्तव में ज्ञानात्मक निज आत्मा को अथवा प्रतिभास युक्त निज ज्ञान को ही जानते हैं, जगत को नहीं। इसका यह अर्थ नहीं कि ज्ञेयाकार रूप से भी जगत न जाना जा रहा हो । ज्ञान में पड़े उन ज्ञेया कारों को ही जगत का ज्ञान कहना व्यवहार है। १४२. केवली भगवान तो जगत को व्यवहार से जानते हैं तो क्या हम उसे निश्चय से जानते हैं ? नहीं, कोई भी दूसरे पदार्थ को निश्चय से नहीं जान सकता, क्योंकि निश्चयनय अभेद या तन्मयता अर्थात तत्स्वरूपता को दर्शाता है। तन्मय होकर पदार्थ का अनुभव किया जाता है पदार्थ को जाना नहीं जाता। अनुभव भी वास्तव उस पदार्थ के निमित्त से उत्पन्न निज सुख दुख का ही होता है पदार्थ का नहीं। इसलिये पदार्थ को जानना व्यवहार से ही है निश्चय से नहीं क्योंकि व्यवहार नय ही अन्य में अन्य का उपचार करता है। नोट:-(यह कथन जैनागम का अभिप्राय व्यक्त करने मात्र के लिये समझना अन्यथा शुद्धात्मा को प्राप्त केवली में ऐसा होना युक्ति सिद्ध नहीं है, क्योंकि उसका स्वरूप तो चित्प्रकाश मात्र है।)
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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