SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २-द्रव्य गुण पर्याय १२६ ४-जीव गुणाधिकार १३४. त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थों से क्या समझे ? छहों द्रव्य, उनकी पृथक पृथक अनन्तानन्त व्यक्ति में, प्रत्येक के अनन्तानन्त गुण धर्म शक्ति व स्वभाव, उनमें से प्रत्येक की तीनों कालों में होने योग्य सर्व पर्यायें। यह सब कुछ केवल ज्ञान युगपत जानता है। १३५. युगपत से क्या समझे? जिस प्रकार हम तुम एक विषय को छोड़कर दूसरे को और उसे छोड़कर तीसरे को अटक अटक कर जानते हैं, उस प्रकार यह ज्ञान विषयों को आगे पीछे के क्रम से नहीं जानता, बल्कि सब को एक साथ जानता है; जैसे कि सारे दिल्ली नगर का ज्ञान। १३६. केवल ज्ञान में 'केवल' शब्द से क्या समझे ? केवल का अर्थ निःसहाय है । अर्थात् उस ज्ञान को इन्द्रिय प्रकाश की सहायता की अथवा ज्ञेय पदार्थ के आश्रय की, अथवा जानने के प्रति कोई प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। सहज जानना ही उसका स्वभाव है। १३७. केवल ज्ञान कितने प्रकार का होता है ? इसके कोई भेद प्रभेद नहीं होते । एक ही प्रकार का होता है । १३८ केवल ज्ञान किनको होता है ? अहंत व सिद्ध भगवान को ही होता है, अन्य संसारी जीवों को नहीं। १३९. ज्ञान का लक्षण सविकल्प उपयोग है। क्या केवल ज्ञान में भी किसी प्रकार का विकल्प होता है ? । हां होता है, अन्यथा वह ज्ञान ही न रहे । 'विकल्प' शब्द के दो अर्थ हैं-एक राग और दूसरा ज्ञान में ज्ञेयों के विशेष आकार। यहां विकल्प का अर्थ मोहजनित राग न समझना परन्तु ज्ञानात्मक आकार समझना। वास्तव में यह ज्ञान सविकल्प निर्विकल्प है।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy