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________________ . जनसिद्धांतसंग्रह। इदानीमप्येषा, बुधजनमरालैः परिचिता महावीरस्वामी, नयनपथगामी भवतु मे (न:) जिनकी वचन मय अमल सुर सरि, विविधनय लहरै धरै । 'जो पूर्णज्ञान स्वरूप जलसे, नहन भविजनको करै।। तामें अनौं लगि धने पंडित, हंसही सोहत मनो। ते वीर स्वामीनी हमारे, नयनपथगामी बनो ॥६॥ अनिरोद्रेकत्रिभुवनजयी कामसुभटः। कुमारावस्थाया-मपि निजषलायन विजितः ॥ स्फुरन्नित्यानन्दप्रशमपदराज्याय स जिनः । महावीरस्वामी, नयनपथगामी भवतु मे (ना) ॥७॥ नाने जगतकी.नंतु जानिता, करी खवश तमाम है। है वेग जाको अमिट ऐसो, विकट अतिमट काम है ॥ ताको स्ववलसे प्रौढवयमें, शान्ति शासन हित हनो। ते वीरस्वामीनी हमारे, नयनपथगामी बनो ॥ ७ ॥ महामोहातङ्क-प्रशमनपराकस्मिकभिषम् । निरापेक्षो बंधुर्विदितमहिमामङ्गालकरः॥ शरण्यः साधूनाम् , भवभयभृतामुत्तमगुणो। महावीरस्वामी,नयनपथगामी भवतुमे (न:) ॥८॥ भयभीत भवते साधु जनकों, शरण उत्तम गुण भरे । निःस्वार्थके ही जगत बांधव, विदितयश मंगल करे ॥ जो मोहरूपी रोग हनिवे, वैद्यवर अद्भुत मनो। . ते वीर स्वामीजी हमारे, नयनपथगामी बनो ॥४॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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