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________________ AVRANA - जैन सिद्धांतसंग्रह। मिहि स्वर्गवासी विपुल सुरपति, नम्रतन है नमत है। तिन मुकुटमाणके प्रभामंडल, पद्मपदमें लसत हैं। जिन मात्र सुमरनरूप जलसे, हनै भव आतप धनो। ते वीर स्वामीजी हमारे, नयनपथगामी बनो ।॥ ३ ॥ यदर्चाभावेन प्रमुदितमना दर्दुर इह ।। क्षणादासीत्स्वर्गी, गुणगणसमृद्धः सुखनिधिः॥ लभन्ते सद्भक्ताः शिवसुखसमाज किमु तदा ? महावीरस्वामी, नयनपथगामी भवतु मे (म.)४ मन मुदित है मंडूकने, प्रभु-पूजवे मनशाकरी । तत् छन लही सुर संपदा, बहु रिद्ध गुण निधिसौं भरी ॥ निहि भक्तिसों सद्भक्त जन लह, मुक्तिपुरको सुख धनो। ते वीर स्वामीनी हमारे, नयनपथगामी चनो॥४॥ कनत्स्वर्णाभासोऽध्यपगततनुर्माननियहो। विचित्रात्माप्येका, नृपतिवरसिद्धार्थतनयः॥ अजन्मापि श्रीमान्, विगतभवरागोदभुतगतिर। महावीरस्वामी, नयनपथगामी भवतु मे (न) ॥५ कंचन तपतवत ज्ञाननिधि हैं, तदपि तनर्मित हैं। नो हैं अनेक तथापि इक, सिद्धार्थसुत भवरहित हैं । मो वीतरागी गति रहित हैं, तदपि अदभुत गतिपनो । ते वीरस्वामीनी हमारे, नयनपथगामी बनो ॥५॥ 'यदीया पारंगंगा, विविधनयकल्लोलविमली। वृहज्झानाम्माभिर्जगति जनतां या स्नपयति॥ ...१ कमलस्वरूपी चरणोंमें। . . .
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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