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________________ wwwwwwwwwwwwwwww १०] जैनसिद्धांतसंग्रह। स्वर्गीय कविवर ५० रूपचंद्रजी पडिकृत- . fol पंचकल्याणक पाठ। .' * श्री गर्भकल्याणके। 'पणविवि पंच परमगुरु, गुरुं निनशासनो। सकलसिद्धिदातार सु. विधनविनासनो।। शारद अरु गुरु गौतम, सुमतिप्रकासनो। . मंगलकर चउ-संघहि पापपणासनो॥ पापै पणासन गुणहि गरुवा दोष अष्टादश रहे। धरि ध्यान कर्म विनाशि केवल-ज्ञान आविचल जिन लहे। प्रमु पंचकल्याणक विरानित, सफल सुर नर ध्यावहीं । त्रैलोक्यनाथ सु देव निनवर, जंगत मंगल गावहीं ॥१॥ जाकै गरमकल्याणक, धनपति आइयो। अवविज्ञान प्रमाण सु इंद्र पगइयो॥ रचि नव बारह योजन, नयरि सुहावनी । कनकरयणमणिमंडित, मंदिर मती बनी। अति वनी पोरि पगारि परिखा, सुवन उपवन सोहिए। नर नारि सुंदर चतुरभेख से, देख जनमन मोहिए । तहां जनकगृह छह मास प्रथमहि, रतनधारा बरपियो । पुनि रुचिकवासिनि जननि-सेवा, करहिं सब विधि हरषियो ॥२॥ सरकुंजरसम कुजर धवल धुरंधरो। केही केशरशोभित, नखशिखसुंदरो॥ कमलाकलशन्हवन, दोय दास सुहावनी।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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