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________________ ३२] जैनसिद्धांतसंग्रह। सिद्धोंके ८ गुण । सोरठा । . . समकित दर्शन ज्ञान, मगुरुलघू अवगाहना । सूच्छम वीरजवान, निराकाष गुन सिद्धके ॥१८॥ . अर्थ-१ सम्यक्तव, २ दर्शन, ३ ज्ञान, १ अगुरुलघुत्व, ५ अवगाहनत्व, १ सूक्ष्मत्व, ७ अनंतवीर्य, ८ अन्यावायत्व, ये सिदोंके ८ मूलगुण होते हैं ॥१८॥ आचार्यके ३६ गुण। द्वादश तप दश धर्मजुत, पालं पंचाचार । षट आवश्यक त्रिगुप्ति गुन, आचारन पदसार ॥ अर्थ-तप १२, धर्म १०, आचार , आवश्यक ६, गुप्ति ये आचार्य महारानके ३६ मूलगुण होते हैं। अब इनको मित्र १ कहते हैं ॥१९॥ द्वादश तप। अनशन ऊनोदर करें, व्रतसंख्या रस छोर । विविक्तशयन आसन घरै, कायकलेश झुठोर ॥ प्रायश्चित्त घर विनयजुत, वैयावत स्वाध्याय । । पुनि, उत्सर्ग विचारक, धरै ध्यान मन लाय ॥२१॥ ... अर्थ- अनशन, २.उनोदर, ३ चैतपरिसंख्यान, १ रसपरित्याग, ५ विविकशम्यासन, ६ कायलेश, ७ प्रायश्चिच लेना, ८ पांच प्रकार विनय करना, ९ वैयाव्रत करना, १० स्वाध्याय
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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