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________________ 1 जैन सिद्धांतसंग्रह । अर्थ-१ अशोकवृक्षका होना, २ रत्नमय सिंहासन, भगवानके सिरपर तीन छत्रका फिरना, ४ भगवानके पीछे भामंडका होना, ५ भगवानके मुखसे दिव्यध्वनिका होना, ६ देवोंके द्वारा पुष्पवृष्टिका होना, ७ यक्षदेवों द्वारा चासठ चवेराका दुरना, दुंदुभि बाजका बनना, य आठ प्रातिहार्य हैं । . अनन्तचतुष्टय | • ज्ञान अनंत अनंत सुख दर्श अनंत प्रमान । बल अनंत अर्हत सो, इष्टदेवं पहिचान ॥१५॥ [#2 • ११ . अर्थ - १ अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, ३ अनन्तसुख, 8 अनन्तवीर्य | जिसमें इतने गुण हों, वह अरहन्तं परमेष्ठी है । अष्टादशदोषवर्जन | जनम नरा तंरषा क्षुधा विस्मय आरत खेद ! रोग शोक मद मोह भय, निद्रा चिंता स्वेद ॥ १८॥ राग-द्वेष अरु मरण जुत, ये अष्टादश दोष । नाहिं हात अर्हत, सो छबि लायक मोप ॥ १७॥ अर्थ - १ जन्म, २ जरा, १ तृषा, १ क्षुधा, ९ आश्चर्य, ६ अरति (पीडां), ७ खेद (दुःख, ८ रोग, ९ शोक, १० मद ११ मोह, १२ भयं, १३ निंद्रा, १४ चिन्ता, १५ पसीना, *१६ राग, १७ द्वेष, १८ मरण, ये १८ दोष अरहंत भगवान में -नहीं होते ॥ १७ ॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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