SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ NNA HINNN NA २६२] जैनसिद्धांतसंग्रह। (२१) श्री गिरनारक्षेत्र पूजा। दोहा-वेदी नेमि जिनेश पद्, नेम धर्म दातार। . . नेम धुरंधर परम गुरु, भविजन सुख कार ॥ १ ॥ निनवाणीको प्रणमिकर, गुरु गणधर उधार । सिद्धक्षेत्र पूना रचों, सब जीवन हितकार ॥ २ ॥ उर्मयत गिरीनाम तस, कहो जगति विख्यात । गिरिनारी तासे कहत, देखत मन हर्षात ॥३॥ गिरिमुउन्नत सुभगाकार है। पंचकूट उतंग सुधार है। बन मनोहर शिला मुहावनी। लखत सुंदर मनको भावनी ॥ भौर कूट भनेक बने तहां । सिद्ध थान मुमति सुन्दर नहीं। देखि पविजन मन हर्षावते । सका मन बन्दनको भावते ॥५॥ त्रिभंगी छन् । वहाँ नेमकुमारा व्रत तप धारा कम विदारा शिव पाई। मुनि कोहि बहत्तर सात शतक पर नागिरि ऊपर मुखदाई। : भये शिवपुरवासी गुणके राशी विविथिति नाशी ऋद्धि परा। सिनके गुण गाऊं पून रचाऊ मन हाऊ सिद्धि करा।. दोहा-ऐसो क्षेत्र महान, विहि पूजत मन वच काय'। स्थापन त्रय वारकर, विष्ठ तिष्ठ इत भाय ॥ ॐ ह्रीं श्री गिरिनारि सिद्धक्षेत्रेभ्यो। मत्र अवतर भववर संवौषटाहाननं । मन्त्र सिष्ठ तिष्ठ :: स्थापनं । अत्र ममसनिहितो भव भव वषट सन्निधिकरण।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy