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________________ जनसिद्धांतसंग्रह। लेकर नीरमुक्षीरसमान महां सुग्वदान भुषासुक. भाई । दे त्रय धार ननों चरणा हरना मम जन्मजरा दुःखदाई ॥ नेमपती तन राजमती भये बालयती वहांसे शिवपाई। कोडि बहत्तरि सातसौ सिद्ध मुनीश भये सुननों हरपाई ॥ . ॐ ह्रीं श्रीगिरिनारि सिद्धक्षेत्रेभ्यो जलं ॥ १॥ चंदनगारि मिलायं सुगंध मुख्याय कटोरीमें धरना । मोह महातम मैंटन कान सु चर्चेतु हों तुम्हारे चरणा ॥ नेम । सुगंधं ॥२॥ मक्षत उज्ज्वल ल्याय घरों तहां पुंन करो मनको हर्षाई । देउ मक्षयपद प्रभु करुणाकर फेर न या भव बास कराई । अक्षत फूल गुलाब चमेली वेळ कदव सुचंपक वीर मुल्याई । प्राशुक पुष्प लवंग चढ़ाय मुगाय प्रभु गुणकाम नशाई । नेमपती. ॥ पुष्पं ॥१॥ नेवन नव्य करों भर थाल सुकंचन भाजनमें घर भाई । मिष्ट मनोहर क्षेपत हों यह रोग क्षुषा हरियो जिनराई। नेमपती० ॥ नैवेद्यं ॥ ५॥ दीप बनाय घरों मणिका अथवा घृतवाति कपूर नलाई । नृत्य करों कर भारति ले मम मोह महातम नाय पलाई ॥नेमपती, ॥ दीपं ॥६॥ धूप दशांग सुगंध मईकर खेवहुं अग्निमझार सुहाई।। लौकर अन सुनो जिननी मम कर्म महावन देठ जराई । नेमि पती० ॥ धूपं ॥ ७॥ के फल सार सुगंधमई रसनाहद नेत्रनको सुखदाई । क्षेपत ..
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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