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________________ मैनसिद्धांतसंग्रह.। . २५७ तीन घाटि.नवकोड़ सब, वंदौसीस.नवाय।. ... गुन तिन अट्ठाईस लों, कहूँ भारती गाय ॥२॥ एक दया पालैं मुनिराना, रागदोष है हरन परं। . तीनों लोक प्रगट सब देखें, चारौं माराधन निकर ।। पंच महाव्रत दुबर धारे, छहों दरव माने मुहितः। सांतमंगवानी मन लावें, पा माठ रिड उपितं ॥ ३.. नवों पदारथ विधिसौं भावं, बंध दशों चूरन करनं. : ग्यारह शंकर नानै मान, उत्तम.बारह व्रत घरनं ॥ . तेरह भेद काठिया चूरे, चौदह गुनथानक लखियं । । महाप्रमाद पंचदश नाशे, सोलकषाय सवै नशियं ॥ ४-11 धादिक सत्रह सब चुरे ठारह जन्म न मरन मुनं । एक समय उनईस परीषह, वीस प्ररूपनिमें निपुर्ण ॥ भाव.उदीक इकोसों जाने, वाइस ममखन त्याग कर । महिमिंदर तेईसों वर्दै, इन्द्र मुरग चौवीस वरं ॥ ५॥ पच्चीसों भावन नित भावे, छनिस अंगउपंग पढ़ें। . सत्ताईसों विषय विनाशें, मट्ठाईसों गुण सुब॥ . . शीतसमय सर चौपटवासी, ग्रीषमगिरिसिर जोग धरें। . वर्षा वृक्ष तर शिर ठाढ़े, आठ करम हनि सिद्ध वरै ॥६॥ दोहा-कहाँ कहाँ को भेद मैं, बुध थोरी गुन भूर । हेमराज, सेवक हृदय, भक्ति करौं भरपूर ॥७॥ ॐ ह्रीं आचार्योगाध्यायप्सर्वसाधुगुरुभ्यो अय निर्वपामिः ।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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