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________________ २२२ ] जैनसिद्धावसंग्रह। परमगुरु हो, भय जय नाम परमगुरु हो ॥ १ ॥ ॐ ही दर्शनविशुद्धादिपोडशकारणेम्यो जन्ममृत्युविनाशा. यमकं ॥ चंदन पिस कपूर मिलाय, पनौ श्री जिनवरके पाय । परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो । दर्शन ॥२॥ ॐ ही दर्शनविशुद्धयादिषोडशचारणेभ्यः चंदनं.॥ तंदुल धवल सुगंध मनृप । पुौ निनवर तिहुँनगमूप । परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो ॥ दर्शनवि० ॥॥ ही दर्शनविशुद्धयादिषोडशकाणेम्यो मक्षवान् नि० ॥ फूक सुगंध मधुपगुनार । पूनों निनबर जगाधार । परमगुरु हो, जय जय नाय परमगुरु हो ॥ दर्शन ॥॥ ॐ ही दर्शनविशुस्यादिषोडशकारणेम्यः पुष्पं नि०॥ सदनेवन बहुविध पकवान | पनों श्री मिनवर गुणखान.। परमगुरु हो, भय जय नाथ परमगुरु हो। दर्शनवि० ॥५॥ ॐ दो दर्शनविशुद्धयादिषोडशकारणेम्पः नवेद्य नि॥ . दीपकमोति तिमर छपकार । जू श्रीनिन केवलधार। . पामगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो । ' दर्शविशुद्ध भावना माय ! सोलह वायकरपद दाय। । परमगुल हो, जय जय नाथ परमगुरु हो ॥ ६॥ - ॐही नविशुद्धयादिषोडशकारणेम्यो दीपं नि० ॥ . . मगर शुम खेय | श्रीजिनवर मागे महकेय । परमगुरु हो, भय नव नाथ परमगुरु हो. ॥ दर्शन ॥७॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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