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________________ जनसिद्धीतसंग्रह। शेला-ये सातों मुनिराज महातपलछमी धारी। - परम पूज्य पद घरें सकल नंगके हितकारी ।। जो मन वच तन शुद्ध होय सेवे औ ध्याय । सौ जन मनरङ्गालाल भष्ट ऋद्धनको पावै ।। दोहा-नमत करत चरनन परत, महो गरीब निवानं । पञ्च परावर्तननि, निरवारौ ऋषिराज ।। ॐ ह्रीं प्तर्षिम्यो पूर्णाध्य निर्वपामीति स्वाहा । (११) अथ सोलहकारण पूजा। अडिल्ल-सोलहकारण भावं तीर्थकर जे भये । हरषे इन्द्र अपार मेरूपै ले गये ।। पूना करि निज धन्य लख्यौ बहु चावसौं । हमहू षोडशकारण भावें भावसौं ॥ १ ॥ - ॐ ह्री दर्शनविशुयादि षोड़शकारणानि ! पत्रावरावतर संवौषट। ___ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादिषोडशकारणानि ! मत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठ । ही दर्शनविशुद्धयादिषोड़शकारणानि ! मन मम सन्निहितौ भव भव वषट् । चौपाई-कंचनझारी निर्मल नीर । पूजौं जिनवर गुणगंभीर । परमगुरु हो, जय नय नाथ परम गुरु हो॥ दर्शविशुदि भावना माय । सोलह वीर्थकरपददाय ।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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