SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९१८ ] जैनसिद्धांतसंग्रह । गीता छन्द । शुमतीद्भव जल अनूपम, मिष्ट शीतळ कायके ॥ भव तृषा कंद निकंद कारण, शुद्ध घट भरवायके || मन्यादि चारण ऋद्धिधारक, मुनिनकी पूजा करूं । ता करें पातिक हरे सारे सकळ अनंद विश्वरूं || ॐ ह्रीं श्रीमन्वस्वरमन्वनिचय सर्व सुंदर मयवान विनयलाल सजयमित्रर्षिम्यो जन्ममरामृत्यु विनाशनाय नलं ॥ १ ॥ श्रीखण्ड कदलीनन्द केशर, मन्द मन्द घिप्तायके । तसु गन्ध प्रसरति दिगदिगन्तर, भर कटोरी लायके ॥ म ॐ ह्रीं श्रीमन्वस्वरमन्वनिचय सर्वसुन्दर जयवान विनयलाळतभयमित्रर्पिम्यो चन्दनं ॥ १ ॥ अति धवल अक्षत खण्डवर्जित हि गननभोगके | कलधौत धारा भरत सुन्दर, चुन्ति शुभ उपयोगके ॥ म०॥ाॐ ह्रीं श्रीमन्वादिसप्तर्षियो अक्षमा निर्वपामि ॥३॥ बहु वर्ण सुवरण सुमन बांछे, अमन कम गुळाचके | केतकी चम्पा चारु महमा, चुने निन कर चावके ॥ म० ॥ ॐ ह्रीं श्रीमन्यादिसप्तर्षियोपुष्पं ॥ ४ ॥ पकवान नाना भांति चातुर, राचत्र शुद्ध नये नये । सदशिष्ट लाडू आदि भर बहु, पुष्टकर भारी लये ॥ म० ॥ ॐॐ ह्रीं श्रीमन्यादिसप्तर्षियो नवेद्यं निर्वपामि ॥ ९ ॥ कलमौत दीपक मड़ित नाना, भरित गोघृतसारसो । यति ज्वलित नगमग मोति भाकी, तिमिर नाशनहार सो ॥म०॥ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादिसप्तर्षिभ्यो दीपं निर्वपामि ॥ ६ ॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy