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________________ जैन सिद्धांतसंग्रह: । [ २१७ भय विमल विमलपददेनहार | जय जय अनंत गुनगन अपार । जय धर्म धर्म शिवशर्मदेत । नय शांति शांतिपुष्टीकरेत ॥ ६ ॥ जय कुंथु कुंयुवा दिक रखेय | जय भर जिन वसुपरिक्षण करेय ॥ जय मछि मल्ल हतमोहमल । नय मुनिसुव्रत व्रतशद ॥७॥ नय नमि नित वासवनुत सपेम । जय नेमिनाथ वृषचक्रनेम ॥ जय पारसनाथ अनाथनाथ । जय वर्द्धमान शिवनगरसाथ ॥ ८ ॥ धत्ता-चौवीस जिंनंदा आनंदकंदा, पापनिकंदा सुखकारी । तिनपदजुगचन्दा उदय अमंदा, वासववंदा हितधारी ॥९॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिचतुर्विंशतिजिनेम्यो महार्ष निर्वपामीति स्वाहा || सोरठा - भुक्तिमुक्तिदातार, चौवीसौं निनंराजवर | तिनपद मनवचधार, जो पुत्रै सो शिव कहै ॥१०॥ इत्याशीर्वादः । (पुष्पांजलिं क्षिपेत) (१०) सऋषिपूजा | । छप्पय- प्रथम नाम श्रीमन्व दुतिय स्वरमन्व ऋषीश्वर । तीसर मुनि श्रीनिचय सर्वसुन्दर चौथौ वर ॥ • पंचम श्रीजयवान विनयकाकस षष्ठम भनि । जयमित्राख्य सर्वचारित्रधामगनि ॥ सप्तम ये सातौं चारणऋद्धिवर, करूं तासु पद स्थापना । मैं पूजूं मनवचकायकरि जो सुख चाहूं आपना. ॥ ॐ ह्रीं चारणविरश्री सप्तर्षीश्वरा ! अत्रावतर अवतर संव षट् । मन्त्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । मत्र मम सन्निहितो सब सब वट् ।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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