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________________ २०४ ] जैन सिद्धांतसंग्रह | 'धानत' सेवक मानके (हो, जगते लेहु निकार । सीमं० ॥९॥ ॐ ह्रीं विद्यमान विद्यतितीर्थंकरेभ्यो ऽनर्घपदप्राप्तये अर्ध नि० स्वाहा। अथ जयमाला आरती । सोरठा - ज्ञानपुधाकर चन्द, भविकत्वेताहेत मेघ हो । भ्रमतममान अमन्द, तीर्थकर बीसों नमों ॥ १ ॥ सीमन्धर सीमन्धर स्वामी । जुगमन्धर जुगमन्धर नामी | बाहु बाहु जिन नगनन तारे । करम सुबाहु बाहुबल दारे ॥ १॥ जात जात केवलज्ञानं । स्वयंप्रम् प्रभु स्वयं प्रधानं । ऋपमानन ऋषि मानन दोष । अनन्त वीर्य वीरनकोषं ॥ २ ॥ सौरीप्रभ सौरीगुणमालं | मुगुण विशाल विशाल दयालं । वज्रधार भवगिरिवज्जर हैं । चन्द्रानन चन्द्रानन वर हैं ॥ ३ ॥ भद्रबाहु भद्रनिके करता । श्रीमुजंग मुजंगम भरता | ईश्वर सबके ईश्वर हालेँ । नेमिप्रभु बस नेमि विराजे ॥ १ ॥ वीरसेन वारं जग जाने । महाभद्र महामद बखाने । 1 नमो जसोधर जसधरकारी, नमो अजितवीरज बलधारी ॥ ५ ॥ धनुष पांचसे काय विरानै । आव कोड़िपूग्ब सब छानै । - समवसरण शोभित बिनराजा । भवजलतारनतरन जिहाना ॥ ६ ॥ सम्यक् रत्नत्रयनिधि दानी | लोकालोकप्रकाशक ज्ञानी । - चत इन्द्रनिकरि वंदित सोहे । सुरनर पशु सबके मन मोहे ॥७॥ दोहा- तुमको पूर्ने वंदना, करे धन्य नर सोय । : · 'द्यानत' सरघा मन धेरै, सो भी घरंमी होय ॥ ८ ॥ ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थ करेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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