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________________ जैन सिदान्त दीपिका विषयों (शब्द, रूप बादि) का बहन किया जाता है और जो भूत, भविष्य तथा वर्तमान-विकामवर्ती विषयों को जानता है, उसे मन कहा जाता है। बनिनिय बोर नोइन्द्रिय उसके पर्यायवाची नाम हैं। इन्द्रियों की तरह मन भी दो प्रकार का होता है-द्रव्यमन और भावमन । मन रूप में परिणत होने वाले पुद्गलों को द्रव्य मन कहते हैं। लब्धि एवं उपयोग रूप मन को भाव-मन कहते ३४. कमों के उपणम, क्षय एवं बायोपशम से निष्पन्न होने वाले भाव (अवस्थाएं) जीव के स्वरूप है। मोहकर्म के वेवाभाव को उपहम कहते हैं । उसकी स्थिति अन्तर्मुहूतं की है । उससे होनेवाली बात्मा की अवस्था को भोपशमिक भाव कहते हैं। ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों के सर्वया प्रणाश को क्षय कहते हैं। उससे होने वाली आत्मा की अवस्था को मायिक भाव कहते हैं। चार घात्यकर्मों के विपाक वेवाभाव को क्षयोपशम कहते हैं। उससे होने वाली बात्मा की बवस्था को बायोपमिक भाव कहने हैं। उदय प्राप्त कर्मों का लय उपसम बोर मयोपशम इन दोनों में होता है किन्तु उपगम में प्रदेशोदव नहीं होता और क्षयोपशम में वह होता है, अतएव ये दोनों भिन्न है।
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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