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________________ जैन सिद्धान्त दीपिका निर्वृत्ति-इन्द्रिय में स्वच्छ पुनलों से बनी हुई और अपना विषय ग्रहण करने में उपकारक दो पोद्गलिक शक्ति होती है-जिसके द्वारा शब्द आदि विषयों का ग्रहण होता है, उसे उपकरण-इन्द्रिय कहते हैं। ३१. भावेन्द्रिय दो प्रकार का होता है: १. लब्धि-इन्द्रिय २. उपयोग-इन्द्रिय ज्ञानावरण आदि कर्मों के क्षयोपशम से उत्पन्न शक्ति विशेष को लब्धि-इन्द्रिय कहते हैं। अर्थ को ग्रहण करनेवाले बात्या के व्यापार को उपयोगइन्द्रिय कहते हैं। लब्धि-इन्द्रिय होता है, तब हो निवृत्ति, उपकरण और उपयोग-इन्द्रिय होने हैं। निर्वृत्ति होने पर ही उपकरप बोर उपयोग इन्द्रिय होते हैं । उपकरण होने पर उपयोग होता है। ३२. पांच इन्द्रियों के क्रमश: पांच विषय (य) हैं: (१) स्पर्थ (४) रूप (२) रम (५) शन्न (३) गन्ध ३३. जिसके द्वारा सब विषयों का बहन किया जाता है और जो कालिक संज्ञान है, उसे मन कहते हैं। जिसके द्वारा इंदियों की शांति प्रतिनियत नहीं, किन्तु सब
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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