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________________ YX जैन सिद्धान्त दीपिका १८. मनुष्य और तिर्यच्चों के अवधिज्ञान क्षयोपशम हेतुक होता है। १६. अवधिज्ञान छह प्रकार का है' : १. अनुगामी २. मननुगामी ३. वर्धमान ४. हीयमान ५. प्रतिपाति ६. अप्रतिपाति २०. मनोवगंणा के अनुसार जो मानसिक अवस्थाओं का ज्ञान होता है, उसे मनः पर्याय ज्ञान कहते हैं । २१. मनः पर्याय ज्ञान दो प्रकार का है : १. ऋजुमति - सामान्यरूपेण मानसिक पुद्गलों को ग्रहण करने वाली मति को ऋजुमति कहा जाता है । २. विपुलमति - उसके विशेषपर्यायों का बोध करनेवाली मति को विपुलमति कहा जाता है। २२. विशुद्धि, क्षेत्र, स्वामी और विषय इन चार भेदों के द्वारा अवधि और मनःपर्याय का अन्तर जानना चाहिए । ` २३. समस्त द्रव्यों और पर्यायों का जो साक्षात् बोध होता है, उमे केवल ज्ञान कहते हैं । १. देखें परिशिष्ट १।३ २. देखें परिशिष्ट १४
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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