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________________ जैन सिद्धान्त दीपिका करता है, अतः वह बाकार-विमेष सहित होने के कारण साकार उपयोग कहलाता है। ६. जान पांच हैं-१. मति २. श्रुत ३. अवधि ४. मनःपर्याय ५. केवल ७. इन्द्रिय और मन के निमित्त से जो ज्ञान होता है, वह मति है। ___ मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध-ये सब एकार्थक हैं। ८. मति जान चार प्रकार का है : १. अवग्रह ३. अवाय २. ईहा ४. धारणा ६. इन्द्रिय और अर्थ का संयोग होने पर दर्शन के पश्चात् जो सामान्य का ग्रहण होता है, उसे अवग्रह कहा जाता है। इन्द्रिय और अर्थ का उचित देश आदि में अवस्थानात्मक योग होने पर दर्शन अर्थात् विशेष के उल्लेख से रहित सत्तामात्र का ग्रहण होता है, उसके पश्चात् जिसका निर्देश न किया जा सके वैसा वस्तु का सामान्य अवबोध होता है, वह अवग्रह १०. बवग्रह दो प्रकार का है : (१) व्यजनावग्रह
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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