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________________ जैन सिद्धान्त दीपिका ३५ ४६. एकत्व, पृथक्त्व, संख्या, संस्थान, संयोग और विभाग ये सब पर्यायों के लक्षण हैं । परमाणु और स्कन्धों के भिन्न होने पर भी यह घट एक है' इस प्रकार की प्रतीति के कारणभूत पर्याय को एकत्व कहते हैं । संयुक्त पदार्थों में भिन्नता की प्रतीति के कारणभूत पर्याय को पृथक्त्व कहते है, जैसे यह उससे भिन्न है । जिसके द्वारा दो, तीन, चार, संख्यान, अमान आदि व्यवहार होता है, उसे संख्या कहते है । परिमण्डल, गोल, लम्बा, चौड़ा, त्रिकोण, चतुष्कोण आदि पदार्थों के आकार को संस्थान कहते है । अन्तररहित होने को संयोग कहते हैं, जैसे दो अंगुलियों का मिलना । वियुक्त पदार्थों में भिन्नता की प्रनीति के कारणभून पर्याय को विभाग कहते हैं, जैसे यह उससे विभक्त है । इनि द्रव्यगुणपर्यायस्वरूपनिर्णय ।
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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