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________________ जैन सिद्धान्त दीपिका २३ २३. वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व इनके द्वारा काल जाना जाता है। वर्तमान रहने का नाम बना है। पदार्थों का नानारूपी में परिणमन होना परिणाम है। चकमण आदि करना किया है। पहले होना परत्व और बाद में होना अपरत है। ४. प्रथम नीन द्रव्य धर्म, अधमं और आकाग दण्याप से एक-एक है.. एक व्यक्तिक है और गति गहन है। ५. धर्मास्निकाय, अधमानि काय, लोकाकाश और एक जीव के अमध्य-अगम्य प्रदेश हान है। २६. अलीकाकाश के प्रदेश अनन्न है। २७. पुद्गन मन्धी के प्रदेश गध्यय, अगध्यय और अनन्न तीनों प्रकार कहा है। ८. परमाणु के प्रदेश नहीं होना। परमाणु अकेला ही होता है और निरण होता है इसलिए उसके प्रदेश नहीं होता। २९. कान अप्रदशी होता है। ३०. वस्तु के वृद्धिकल्पित अंग को देश कहत है।
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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