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________________ जैन सिद्धान्त दीपिका १६. परमाणुओं के एकोभाव को स्कन्ध कहते है। दो से लेकर अनन्त तक के परमाणु एकीभूत हो जाते है, उनका नाम स्कन्ध है. जैसे ... दो परमाणुओं के मिलने से जो स्कन्ध बनता है, उसे विदेशी समन्ध कहते है । इसी प्रकार तीन प्रदेशी, दशप्रबंशी, मल्येय प्रदेणी, अमस्येय प्रदशी और अनन्त प्रदेशी म्बन्ध होते है। १६. कन्ध का भंद और मघात हान में भी ग्बन्ध होता है। भेद में होनेवाला स्कन्ध, जमे एक शिला एक काध है। उसके टूटने में अंग्रेक पन्ध बन जाते है। ___ मघात मे हानवाला बन्ध, जैसे प्रत्येक नन्न म्कन्ध है। उनको मदिन करने में एक स्कन्ध बन जाता है। अविभागी अग्निकायों के लिए भी मध शब्द का व्यवहार होता है, जैम . . धर्माग्निकाय, अधाग्निकाय, आकाणाम्निकाय और जीवाग्निकाय कन्ध। अजघन्य गृण वाले परमाणओं का चिकनगन और मेगन म एकीभाव होता है। __गुण का अर्थ है. अश। अजयन्य गणवाल अर्थात दो या दो में अधिक गुणवान चिकने एव में परमाणुओं का क्रमश: अजघन्य गुणवाले एवं चिकन परमाणा के माथ एकीभाव होना है। पृथक-पृथक परमाण भापम में मिलते है, उनका हनु स्निग्धना और रक्षना है। परमाण वाई विपम गुणवाल हो, चाहं मम गुणवाल हां, उनका परम्पर मम्बन्ध हो जाता है ।
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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