SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन सिद्धान्त दीपिका ११. धर्म के इस प्रकार है: १. शान्ति-क्षमा ६. सत्य २. मुक्ति-निनोमना ७. संयम ३. आजव-सरलता ८. तप ६. ग्याग--विसर्जन ५. लापव-अकिञ्चनता १०. ब्रह्मचर्य १२. धर्म का परिणाम मारमोदय है, इसलिए वह लोकधर्म (लौकिक धर्म) से भिन्न है। मिलता १३. धर्म का म्बम्प कभी परिवर्तित नहीं होता और वह मबंदा गवंत्र सब व्यक्तियों के लिए एक समान होता है, इन कारणों में भी वह (धर्म) लोकधर्म (लोकिक धर्म ) से भिन्न है। लोकधर्म और धर्म में निम्न तीन हंतुओं के द्वाग अन्तर दिखलाया गया है१. लोकधर्म से ममाज का व्यवहार चलता है और धर्म में आत्मा का उदय होना है। २. देश, काल आदि के परिवर्तन में लोकधर्म के स्वाप में परिवर्तन होता रहता है, किंतु धर्म का म्वरूप मयंत्र मदा अपरिवतित रहता है। ३. लोकधर्म भिन्न-भिन्न वर्गों में भिन्न-भिन्न प में प्रचलित होता है, किंतु धर्म मबकं लिए एक रूप ही होना है। गृहस्थ और मुनि के धर्म दो नहीं है, केवल आचरण की क्षमता के बाघार पर उसके महावत
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy