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________________ जैन सिद्धान्त दीपिका ८. अहिंसा की परिभाषा के दो अंग हैं : १. प्राणों का हनन न करना। २. अप्रमत्त रहना। ६. सद्भाव यथार्थ) के प्रकाशन को सत्य कहा जाता है। सद्भाव के चार प्रकार हैं : १. काय-ऋजुता-दैहिक चेष्टाओं की निश्छलता। २. भाव-ऋजुता-मानसिक चिन्तन को निश्छलता। ३. भापा-ऋजुता-वाणी की निश्छलता। ४. अविसंवादी प्रवृत्ति--कथनी और करनी में सामञ्जस्य। सद्भाव के प्रकाशन का नाम सत्य है। १०. अदत्तवस्तु का ग्रहण न करना अस्तेय है । ११. इन्द्रिय और मन के निग्रह को ब्रह्मचर्य कहा जाता है। १२. ममत्व-विसर्जन को अपरिग्रह कहा जाता है। १३. समितियां पांच हैं : १. ईर्या ४. आदान-निक्षेप २. भापा ५. उत्सर्ग ३. एपणा चारित्र के अनुकूल होने वाली प्रवृत्ति को समिति कहा जाना है।
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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