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________________ ५२ जैन कथामाला भाग ३१ दर्शन हो जायेगे तो उसे जल्दी ही विद्या सिद्ध हो जायेंगी। इसलिए दर्शन देकर उसका उपकार करिए। --अगारक को देखने की अभी आवश्यकता नही है। -वसुदेव ने उत्तर दिया। हिरण्यवती उन्हे लेकर वैताढ्य गिरि पर शिवमदिर नगर मे गई। वहाँ से सिहदष्ट्र राजा ने उन्हें अपने महल मे ले जाकर नीलयमा का लग्न उनके साथ कर दिया। कुमार वसुदेव के विवाह को कुछ ही दिन व्यतीत हुए कि एक दिन उन्हे वाहर कोलाहल सुनाई पडा । कुमार ने द्वारपाल से इसका कारण पूछा तो वह बताने लगा-- __ यहाँ शकटमुख नाम का एक नगर है। उसमें राज्य करता था राजा नीलवान् । उसकी रानी नीलवती के उदर से एक पुत्री हुई नीलाजना और पुत्र नील । दोनो वहन-भाइयो मे यह तय हो गया कि अपने पुत्र-पुत्रियो का विवाह आपस मे करेंगे । नील का पुत्र हुआ नील कण्ठ और नीलाजना की पुत्री नीलयशा। पहले वायदे के अनुसार नील ने अपने पुत्र नीलकठ के लिए नीलयशा की याचना की। नीलयगा के पिता सिहदष्ट्र ने बृहस्पति नाम के मुनि से पूछा तो उन्होने बताया -~'नीलयशा का पति वसुदेव कुमार होगा।' इसीलिए नीलयशा का लग्न आपके साथ हुआ । विवाह का समाचार सुनकर नील युद्ध करने आया किन्तु सिहदष्ट्र ने उसे पराजित कर दिया । यही कारण है इस कोलाहल का। वसुदेव कुमार द्वारपाल के इस कथन से सतुष्ट होगए । एक बार उन्हे शरद ऋतु मे विद्यासिद्धि और ओपधियो के लिए ह्रीमान पर्वत को विद्याधरो के समूह जाते दिखाई दिये । वसुदेव को भी विद्या सीखने की इच्छा जागृत हो आई। उन्होने नीलयशा से कहा-'मुझे विद्या सिखाओ' नीलयशा राजी हो गई। .
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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