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________________ श्रीकृष्ण - कथा - वसुदेव के अन्य विवाह सोचने लगे वसुदेव --- मैं यहाँ किस प्रकार आया ? मै तो गन्धर्वसेना के पास सो रहा था। इधर-उधर दृष्टि दौडाई तो पार्श्व मे ही एक प्रेत खड़ा दिखाई पडा । विजली सी कौंधी मस्तिष्क मे और उन्हे सब कुछ याद आ गया । वह जल क्रीडा से थक कर गधर्वसेना की बगल मे सो रहे थे। तभी उन्हे ऐसा अनुभव हुआ कि कोई उनसे कह रहा है 'उठ, उठ' और फिर किसी ने उन्हे उठाया और ले चला । गहरी निद्रा मे निमग्न होने के कारण वे प्रतिरोध न कर सके । इस प्र ेत के माध्यम से ही हिरण्यवती विद्याधरी ने मुझे बुलवा मँगाया है । देखते-देखते प्रेत अन्तर्धान हो गया । वसुदेवकुमार को विचारमग्न देखकर हिरण्यवती पुन बोली -कुमार । आप किस सोच मे पड गये ? -- सोच रहा हूँ कि मुझे क्यो बुलाया गया है ? - मुझे आप पहिचान तो गये ही होगे ? हॉ 1 ५१ - तो मेरी इच्छा भी जान गये होगे ? नीलयशा से लग्न करिए । कुमार वसुदेव कुछ उत्तर देते उससे पहले ही नीलयशा अपनी सखियो सहित वहाँ आ पहुँची । उसकी पितामही ( दादी) हिरण्यवती ने पौत्री नीलया से कहा - अपने पति को ले जाओ । पितामही की आज्ञा से नीलयगा कुमार वसुदेव को लेकर आकाश मार्ग से चली । तत्काल हिरण्यवती भी उनके साथ चल दी । दूसरे दिन प्रात काल हिरण्यवती ने वसुदेव कुमार से कहा 1 -कुमार । मेघप्रभ वन से ढका हुआ यह ह्रीमान पर्वत है । इस गिरि पर ज्वलनवेग विद्याधर का पुत्र अगारक विद्याभ्रष्ट हुआ रह रहा है । पुन विद्याधरपति होने के लिए वह विद्या साधन कर रहा है । वैसे विद्या सिद्धि मे उसे बहुत समय लगेगा किन्तु यदि आपके
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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