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________________ श्रीकृष्ण-कथा-वसुदेव के अन्य विवाह नीलयशा और वसुदेव गये तो ह्रीमान पर्वत पर विद्यामिद्धि के लिए किन्तु करने लगे वहाँ रमण---इन्द्रिय सुख-भोग | भोग से तनिक निवृत हुए तो एक सुन्दर मयूर दिखाई पडा । उसे पकडने नीलयशा दौडी तो मयूर उसे अपनी पीठ पर विठा कर ने उडा । पीछेपीछे वसुदेव भी दौडे । वे भूमि पर दौड रहे थे और मयूर आकाश मे उड रहा था । मयूर आकाग मे ही अदृश्य हो गया और वसुदेव एक नेहडे में जा पहुँचे । गोपिकाओ ने सत्कारपूर्वक उन्हे रात्रि व्यतीत करने की आज्ञा दे दी। प्रात हुआ तो वसुदेव दक्षिण दिशा की ओर चल दिये । गिरि तट पर एक गाँव आया । वहाँ उच्च स्वर मे वेद ध्वनि सुन कर वसुदेव ने एक ब्राह्मण से इसका कारण पूछा । ब्राह्मण ने वताया रावण के समय मे दिवाकर नाम के एक विद्याधर ने अपनी पुत्री का विवाह नारद के साथ कर दिया था । उस वश मे इस समय सुरदेव नाम का ब्राह्मण हुआ। यही इस ग्राम का प्रमुख ब्राह्मण है। उसकी क्षत्रिया नाम की स्त्री से सोमश्री नाम की एक पुत्रो हुई। सोमश्री वेद की प्रकाड विद्वान है। उसके विवाह के सबध मे कराल नाम के ज्ञानी से पूछा तो उसने कहा- 'जो इसे वेद मे जीत लेगा, वही इसका पति होगा।' उसी के परिणय के लिए अनेक युवक वेदाभ्यास कर रहे हैं। वसुदेव ने पूछा-~-यहाँ वेदाचार्य कौन है ? --ब्रह्मदत्त उपाध्याय | --ब्राह्मण का उत्तर था। कुमार वसुदेव ने ब्राह्मण का वेश बनाया और ब्रह्मदत्त के पास जा पहुँचे। कहने लगे --मैं गौतम गोत्री स्कन्दिल ब्राह्मण हूँ। कृपया मुझे वेदाभ्यास कराइये।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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