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________________ श्रीकृष्ण-कथा-वाल-क्रीडा मे परोपकार १४६ ___यदि आप उसकी परीक्षा लेना ही चाहते है तो अरिप्ट नामक अपने शक्ति सम्पन्न वृषभ, केगी नामक अश्व और दुन्ति खर तथा मेष को वृन्दावन मे खुला छोड दीजिए। जो इनको यमपुर पहुंचा दे वही आपका काल है। निमित्तज ही आगे बोला -इसके अतिरिक्त भी वह महाक र कालिय नाग का दमन करेगा। और आपके पद्मोत्तर व चपक नाम के हाथियो को भी मारेगा। वही पुरुष एक दिन आपके भी प्राणो का ग्राहक बन जायेगा। निमित्तज के वचन सुनकर कस ने अरिष्ट वृषभ, केशी अश्व, खर और मेष को वृन्दावन मे खूला छुडवा दिया तथा अपने दोनो मल्लोमुष्टिक और. चाणूर को आज्ञा दी कि 'मल्लविद्या का अभ्यास करके तैयार रहो।' ___ मथुरा में मुष्टिक और चाणूर मल्लयुद्ध का अभ्यास करने लगे और वृन्दावन मे आकर उन चारो दुष्ट पशुओ ने उत्पात खडा कर दिया। उनके उत्पात से गो-पालक बडे दुखी हुए। अरिष्ट वृषभ तो साक्षात् अरिष्ट ही था। वह अपने सीगो से गायो को उछालता और मार डालता । ग्वालो ने दोनो भाइयो से आकर पुकार की-हे कृष्ण । हे वलदेव ! हमारी रक्षा करो। एक बैल हमारी गायो के प्राणो का ग्राहक बन गया है। वह सभी गौओ को नष्ट किये डालता है। श्रीकृष्ण तुरन्त ग्वाल-बालो के साथ चल पडे। उस समय अनेक वृद्ध जनो ने कहा-'कृष्ण । तुम मत जाओ। हमे गाय नही चाहिए।' किन्तु कृष्ण रुके नहीं और वही जा पहुँचे जहाँ यमराज के समान अरिष्ट वृषभ खडा था। वृषभ को देखते ही कृष्ण ने हुकार करके उसे अपने पास बुलाया। बैल आया तो सही किन्तु सहज रूप मे नही, क्रोधित मुद्रा मे । उसने १ भवभावना २३५२-२३५६ २ भवमावना २३५७-२३५६
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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