SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ जैन कथामाला भाग ३२ आदेश पाकर निमित्तज्ञ तो अपनी गणना मे लगा और कस विचारमग्न हो गया। आज ही तो वह देवकी के पास अचानक ही घूमताघामता जा पहुँचा था और उस नकटी बालिका को देखकर उसे 'देवकी का सातवाँ गर्भ मुझे मारेगा' इस बात की स्मृति हो आई थी। इसी कारण उसने निमित्तज्ञ को बुलवाकर अपने हृदय की शका दूर करने का प्रयास किया था।' अब निमित्तज्ञ के यह कहने पर कि 'सातवाँ गर्भ किसी अन्य स्थान पर अभिवृद्धि पा रहा है' उसकी चिन्ता और भी वढ गई थी । कस अपने हृदय मे अपने शत्रु से निपटने की योजनाएँ बनाने लगा; तभी निमित्तज्ञ ने सिर ऊँचा करके कहा -राजन् । मुनि का कथन अटल सत्य है । आपका शत्रु गोकुल मे अभिवृद्धि पा रहा है। कम ने सावधान होकर निमित्तज्ञ के कथन को सुना और पूछने लगा -उसकी पहिचान क्या है ? निमित्तल ने बताया १. (क) भवभावना २३४७ से २३५० (ख) श्रीमद्भागवत मे यह सूचना कस को योगमाया द्वारा दिलवाई है । योगमाया श्रीकृष्ण की माया है और नद के घर कन्या रूप मे उत्पन्न हुई थी। उसे वसुदेवजी ले आते है और कस उस कन्या को मारने के लिए उद्यत होता है तो वह कम के हाथ से छूट कर आकाश मे 'उड जाती है और भविप्यवाणी करती है अरे मूर्ख । मुझे मारने मे तुझे क्या मिलेगा ? तेरे पूर्वजन्म का शत्रु तुझे मारने के लिए किमी स्थान पर उत्पन्न हो चुका है। . . (श्रीमद्भागवत, दशवा स्कन्ध, अध्याय ४, श्लोक १२) इमी कारण कम ने शकुनि, पूतना आदि को गोकुल के सभी नवजात शिशुओ की हत्या करने भेजा था।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy