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________________ स्पष्टत ये सभी कृष्ण देवकी-पुत्र कृष्ण नहीं है। वैदिक परम्परानुसार श्रीकृष्ण की नीति का प्रमुख आधारस्तम्भ श्रीमद्भगवद्गीता है, जो उनके द्वारा उपदिष्ट है । इमी में उनका योगेवर रूप परिस्फुट हुआ। बौद्ध साहित्य में श्रीकृष्ण वौद्ध परम्परा का कया माहिल्य जातको में वर्णिन है । जातक सुद्दकनिकाय के जन्तर्गत परिगणित किए जाते है । जातक कथाओ मे घटजानक मे श्रीकृष्ण का चरित्र वर्णन है ।' इनको सक्षिप्त कथा इस प्रकार है - प्रात्रीन काल में उत्तरापथ के कमभोग गज्य के अन्तर्गत अमितजन नाम का नगर था । उनमे मकाकम नाम का राजा राज्य करता था। उसके दो पुत्र थे-कम और उपकन तथा एक पुत्री थी देवागम्ना । पुत्री के जन्म 'पर ज्योतिपियो ने भविष्यवाणी की कि 'इमके पुत्र के द्वारा कम के वंश का विनाश होगा।' मकाकम पुत्री के प्रति मोह के कारण उसे मरवा न सका। मकाकस की मृत्यु के बाद कम राजा बना और उपकस युवराज । कम ने भी अपनी वह्नि को मरवाया नहीं किन्तु पृयक गज-महल में उसे वन्दी वना दिया और पहरे पर नन्दगोपा तथा उसके पति अधकवेणु को रख दिया । उसने बहिन का विवाह न करने का निश्चय किया और मोत्रा जब विवाह ही न होगा नो पुत्र कहाँ से आयेगा । यह व्यवस्था करके कम मन्तुष्ट हो गया । उनी समय उनर मथुरा में महासागर नाम का गजा राज्य करता था। उसके दो पुत्र थे-मागर और उपसागर । पिता की मृत्यु के बाद सागर राजा वना और उपसागर युवराज । उपसागर और उपकन महनाठी थे। उपसागर ने अपने भाई के अन्त पुर मे कोई दुराचरण किया अत अग्रज सागर मे भयभीत होकर वह उपकम के पास आ गया। कम-उपकम ने उसे आदरपूर्वक रखा। एक दिन उपमागर ने देवागम्भा को देख लिया। दोनो मे प्रेम हो गया। नन्दगोपा की सहायता से वे मिलने लगे और देवागम्भा गर्भवती हो गई। रहस्योद्घाटन होने पर कम ने देवागम्भा ने उसका विवाह इस शर्त पर कर ३ पालि साहित्य का इतिहान, पृष्ठ २८० ।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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