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________________ वैदिक परम्परा म उनके जीवन चरित्र का वर्णन करने वाले अनेक ग्रय है-जिनमे श्रीमद्भागवत, महाभारत, वायुपुराण, अग्निपुराण, ब्रह्म वैवर्तपुराण, मार्कण्डेयपुराण, नारदपुराण, वामनपुराण, कूर्मपुराण, गरुडपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, देवी भागवत, हरिवशपुराण आदि प्रमुख है। . इन्ही पुराणो के अनुसार वाद के कवियो ने भी अपभ्र श'तथा अन्य देशज भाषाओ मे श्रीकृष्ण का गुणगान किया। पश्चातवर्ती कवियो पर सर्वाधिक प्रभाव श्रीमद्भागवत और जयदेव के गीत-गोविन्द का पडा । चैतन्य महाप्रभु, विद्यापति, सूरदास, मीरावाई तथा अनेक भक्त कवि कृष्ण के लीला-विहारी और रसिक शिरोमणि रूप पर ही अधिक रीझे है। रसखान तथा अन्य मुसलमान कवियों ने भी उनके इसी रूप की उपासना की है। मध्यकाल से यह धारा आधुनिक युग मे अयोध्यासिंह उपाव्याय 'हरिऔध' के 'प्रिय प्रवास' और सेठ गोविन्ददास के 'कर्तव्य' तक वह आई है। यद्यपि वैदिक परम्परा और मनातन धर्म के अनुयायी कृष्ण के नाम का उल्लेख वेदो मे बताते है किन्तु वे कृष्ण नाम के व्यक्ति और थे-देवकीपुत्र कृष्ण नही । कृष्ण नाम के उल्लेख इस प्रकार है (१) ऋग्वेद के अष्टम मण्डल के ७४३ मत्र के सप्टा ऋपि कृष्ण है।' (२) ऋग्वेद के अष्टम मण्डल के ८५, ८६, ८७वे तथा दशम मण्डल के ४२, ४३, ४४वे मन्त्रो के सृष्टा भी ऋपि कृष्ण है।' (३) ऐतरेय आरण्यक मे 'कृष्ण हरित' यह नाम आया है। (४) कृष्ण नाम का एक असुर अपने दस हजार सैनिको के साथ अशुमती (यमुना नदी) के तटवर्ती प्रदेश में रहता था । वृहस्पति की सहायता से इन्द्र ने उसे पराजित किया ।४ . (५) इन्द्र ने कुष्णासुर की गर्भवती स्त्रियो का वध क्यिा ।५ १ प्रभुदयाल मित्तल-ब्रज का मास्कृतिक इतिहास, पृष्ठ १५-१६ । २ भाण्डारकर-वैष्णविज्म शैविज्म, पृष्ठ १५ । ३ सास्यायन ब्राह्मण, अ० ३०, प्रकाशक-आनन्दाश्रम, पूना । ४ ऐतरेय आरण्यक ३/२/६ | ५ ऋग्वेद १/१०/११ ।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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