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________________ 'दिया कि वे उमसे उत्पन्न पुत्र को मार देंगे। देवागम्भा ने पुत्री को जन्म दिया । उसका नाम अजनदेवी रखा गया । कस ने गोवड्ढमान गाँव उपसागर को दे दिया और वह वहाँ अपनी पत्नी देवागम्भा और सेविका नदगोपा तथा सेवक अधकवेणु के साथ रहने लगा। ___ सयोग से देवागम्मा और नदगोपा साथ ही गर्भवती होती । देवागम्भा के पुत्र होते और नदगोपा के पुत्रियाँ । देवागम्भा 'भाई पुत्र को मार डालेगे' इस भय के कारण अपने पुत्र नन्दगोपा को दे देती और उसकी पुत्रियाँ स्वय ले लेती । इस प्रकार उसके दस पुत्र हुए-(१) वासुदेव, (२) वलदेव, (३) चन्द्रदेव, (४) सूर्यदेव, (५) अग्निदेव, (६) वरुणदेव, (७) अर्जुन, (८) प्रद्य म्न, (९) घटपडित और (१०) अकुर । ये सभी अधकवेणु-दास-पुत्र कहलाए। बडे होकर ये सभी लूट-मार करने लगे । जब कम ने अधकवेणु को बुलाया और उसको दण्ड देने का भय दिखाया तो उसने सारा भेद खोल दिया। अव कम ने उन दमो को बुलाया और अपने मल्ल मुष्टिक और चाणूर से मरवाने का प्रयास किया किन्तु वलदेव ने उन दोनो मल्लो को मार डाला और वासुदेव ने अपने चक्र से कम और उपकम को धराशायी कर दिया । इसके बाद वे जम्बूद्वीप विजय करने निकले । उन्होने अयोध्या के राजा कालसेन को परास्त कर उसका राज्य हथिया लिया । द्वारवती के राजा को मार कर वहाँ अपना अधिकार कर लिया। इनके अतिरिक्त प्रेसठ हजार राजाओ का चक्र मे शिरच्छेद करके उनके राज्यो को अपने अधीन कर 'लिया । फिर अपने राज्य को दस विभागो मे विभाजित कर दिया । नौ भाइयो ने तो अपने भाग ले लिए किन्तु अकुर ने व्यापार करने की इच्छा 'प्रगट की । उमका भाग अजनदेवी को मिला। वासुदेव का प्रिय पुत्र मर गया तो उसके मताप-शोक को घट पडित ने बडी चतुराई से दूर किया । इन दस भाइयो की सतानो ने एक वार कृष्ण द्वीपायन का अपमान करने के लिए एक तरुण राजकुमार को गर्भवती स्त्री बनाकर पूछा-'इनके गर्म से क्या उत्पन्न होगा" कृष्ण द्वीपायन सब कुछ समझ गए । उन्होने बताया
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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