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________________ पाण्डव वच गए...............१५५.. ___ करके पाण्डवो की हत्या करने के लिए भेजा था।"-कृत्या बोली। . : - भील ने अाश्चर्य प्रकट करते हए कहा-"पाप कृत्या विद्या हैं। और धर्मराज युधिष्ठिर के परिवार का नाश करने के लिए उस दुष्टात्मा के कहने से चली आई ? आश्चर्य की बात है। आप को तो उसी दुष्ट का बध करना चाहिए।" ___ कृत्या भील की बात सुन कर तुरन्त वापिस चली गई और जाते ही कनकध्वज के सिर पर वज्र की भाति गिरी जिस से उसका सिर फट गया और कनक ध्वज यमलोक सिधार गया । । भील रूपी देव ने अमृत नोर का छोटा देकर धर्मराज युधिष्ठिर की मूर्छा दूर की। जब वे पूरी तरह सावधान होगए, तो अपने सामने भील को देख कर बोले .--भीलराज ! वह कौन शक्ति है. जिसने मुझ मूछित किया था। उसो ने मेरे भ्राताओं को अपनी माया से मृत समान कर दिया।" भील रूपी देव ने कहा-'हे धर्मराज ! मेरे प्रश्नो का उत्तर दें तो आप का सब दुख दूर हो सकता है। आप ने उस समय मेरी बात नहीं मानी और पानी पिया।" युधिष्ठिर समझ गए कि वह भील नहीं बल्कि कोई यक्ष है। अत तर्क वितर्क करना ठीक न समझ उन्होने कहा"आप प्रश्न कीजिए।" ___ तव भील रूपी देव ने प्रश्न किए और युधिष्ठिर उत्तर देने लगे। प्रश्न--'मनुष्य का कौन मदा साथ देता है ?" उत्तर-"धर्म ही उसका सदा माथ देता है.। प्र०-कौन सा ऐसा शास्त्र (विद्या) है जिमका अध्ययन कर के मनुष्य बुद्धिमान होना है ।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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