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________________ कर-जन्म र में धीमान नगन में पारा में पूर्व ही उन्होंने शरीर शागिर्ग यागने पर उनकी महागज उप्रमेन पर क्रोध चीर प.नन उन्हान निडान वान्या श्री “न नप प्रभाव समान मानि अमन का यष्ट देने वाला ।' कार पर उस नापम ने महागणी गरिगी के गर्भ में नायर न र में महाराज यमन के बदय का मान पान की छा सागर 41 पीर मप्र अन्न का मृत्यु मका, 'प्रसफल रहा __T TET पासान , बार दूसरे पर उपाय किये जिन मार्ग Tी पाप टा। दिया जवाना या निदान पर नक पूर्ण नहीं हो जाता तर प, घी का में प्रत रहते हैं। यात तो यह है कि भ31 ३. घार जिस मार्ग पर चल पड़ना फिर वह उत्तरोत्तर नीत्र गरिमा पर ग्रा यदना जाना है। पूर्व भय के नापस ने मृत्यु मारने का निशान किया था, मिलिए एम जन्म में फम के एमसन र पंपासमा पो दर देने का ना तांता लगाया " , " राग. पारी मारी दृष्टि मिदर उठी।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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