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________________ 5 1 जैन ५२ महाभारत दिया गया । उसके साथ ही एक पत्र पर उसके माता-पिता तथा जन्म आदि का सारा वृत्तान्त भी लिखकर रख दिया गया । विश्वासार्थ महाराज ने स्वनामाङ्कित एक मुद्रिका भी इस पिटारी मे रखदी । ताकि यदि शिशु के भाग्य मे जीवन लिखा हो तो कोई इसे प्राप्त कर इसका पालनपाषण करदे | , ~~~~~~ इस प्रकार सारी व्यवस्था कर अमावस्या की घनान्धकार रात्रि मे शिशु सहित इस पिटारे को यमुना की उत्तरल तरगों में प्रवाहित कर दिया गया । और जनता मे यह प्रचारित कर दिया गया कि नवजात शिशु मृतप्राय था इसलिए उसे यमुना में बहा दिया गया । सुभद्र श्रेष्ठी को कस की प्राप्ति प्रभात के अरुणोदय की कान्ति से सब दिशाए अनुरजित हो रही थीं । पक्षी चहचहाते हुए अपने बसेरों से निकल निकल कर आकाश मे इधर उधर उड़ते चले जा रहे थे। सभी नगर ग्रामवासी नर-नारीगण नित्य नियमानुसार स्नानार्थ सरित-सरोवरों के तटों की ओर सैर करते हुए चल पड़े थे। सभी जलाशयों व नदियों के घाटों की इस समय की शोभा बड़ी ही लुभावनी थी, कोई स्नान कर रहा था । तो कोई स्नान कर सन्ध्या-वदन मे लग गया था, तो कोई नदी तट पर ध्यानावस्थित बैठा था तो कोई स्नान से पूर्व व्यायाम कर रहे थे कहीं तैलाभ्यग हो हो रहा था, कुछ लोग यमुना की अगाध नील जल धारा मे तैरते हुए जल क्रीड़ा कर रहे थे । कहीं सुन्दरिया स्नान कर रहीं थीं। तो कहीं उथले जल में उछल-कूद मचाते हुए बालक दर्शकों के मनों को मोहित कर रहे थे | ऐसे ही सुहावने समय मे शौर्यपुर नगर के चहले-पहल से भरे हुए यमुना के घाटों से कुछ दूर सुभद्र नामक व्यापारी सैर करने के लिए निकल पड़ा । सुभद्र पर पुण्य देव की पूरी-पूरी कृपा थी । सुख सम्पति का कोई ठिकाना न था बड़े-बड़े राजप्रसादोपम भवन थे, उद्यान थे, उन विशाल भवनों के द्वार पर सदा हाथी घोड़े बन्धे रहने । पर इस सम्पत्ति को भोगने वाली कोई सन्तान न थी, कई वर्ष पूर्व सुभद्र के एक सन्तान हुई भी थी पर वह भी कुछ दिन ही सेठ जी के मन को मोहित कर चल बसी । 1 सतानाभाव के कारण उनका तथा उनकी पत्नी का चित्त सदा
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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