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________________ जैन महाभारत उपस्थित राजाओं की दशा बड़ी विचित्र थी। उनके बदन पर पड़े बल उनके मनोभावों को स्पष्ट कर रहे थे । उसकी रूप राशि को देख कोई हस्तकमल की छवि कहने लगा । कोई उसकी दातो की सुन्दर पंक्ति को अनार के दांनों से उपमा देता था तो कोई उसके नेत्र युगल कोमृगीनयनों से घटित करता । कामी पुरुष अंगुष्ठसे लेकर सिर तक सुन्दरता को ही निरखने लगे । धैयवान् निश्चल भाव से चुपचाप दृश्य को देखने में लीन थे। कोई उसकी सुन्दरता को देख कर आश्चर्य कर रहा था, कोई प्रतिज्ञा पूर्ण कर उसे प्राप्त करने की बात सोच रहा था । फिर राजकुमार तो देखते ही उसे पाने को लालायित हो रहे थे किन्तु उनकी आशाओं पर उस समय तुषारापात हो जाता जब कि उन की दृष्टि उस वज्रमय धनुष पर पड़ती थी । किन्तु अन्य कोई उपाय ही न था उसे प्राप्त करने का, इसलिए फिर उनके हृदय में उत्साह का संचार होने लगता । इस प्रकार शृङ्गार युक्त वेदी पर बैठी राजकुमारी को दर्शकों ने अपने भावानुसार भिन्न भिन्न दृष्टि से देखा । ५६८ इतने में ही दर्शको को 'शान्त करने के लिए भेरी द्वारा एक उच्च नाद किया गया जिसे सुन कर सब दर्शक शान्त हो गये । पश्चात् युवराज 'वृष्टद्युम्न ने इस प्रकार घोषणा की कि "उपस्थित नृपगण एव युवराज ! नेत्राजन स्वरूप मेरी भगिनी द्रोपदी राजकुमारी उसी के गले में वर माल डालेगी अर्थात् उसका वरण करेगी कि जो तेल मे प्रतिबिम्बत होते हुए चक्रो के बीच में से प्रस्तुत धनुष द्वारा ऊपर लटक रही राधा (मछली) को वेधेगा । यह पूर्ण सत्य है । आप सब हमारी प्रतिज्ञा की पूर्णता तथा अपने स्त्रीरत्न की प्राप्ति के लिए उद्यत हो जाइये ।" धृष्टद्युम्न की घोषणा को सुन कर क्रमश नृप अपने बल अजमाने को धनुष के पास आने लगे। उधर हाथ में विशाल दर्पण लिए वेदिका पर खड़ी धातृ आते हुए राजाओं का राजकुमारी को परिचय देती जाती थी । हे कुमारी । सर्वप्रथम इस्तिशीर्ष नगर का राजा दमदन्त धनुष चढ़ाने के लिए तत्पर हुवा किन्तु बीच में छींक का अपशकुन होने से पुनः अपने सिंहासन पर जा रहा है । उसके बाद मथुरापुरी का राजा घर धनुष उठाने को उद्यत हुवा ही था कि सभी खिल खिलाकर हस पड़े। उसने इसमें अपना अपमान , समझा और वापिस सिंहासन पर जा बैठा । पश्चात् विराट राजकुमार
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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