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________________ द्रौपदी स्वयंवर ५६६ कीचक धनुष के पास आया । किन्तु वह उसे देखकर ही स्तब्ध हो गया तथा बिना स्पर्श किये ही लौट गया । जरासध पुत्र सहदेव भी बड़े उत्साह पूर्वक विजय श्री प्राप्त करने के लिये शेर की भॉति दहाड़ता आया, पर घनुष पर दृष्टि पड़ते ही घबरा गया और वापिस जा बैठा । इन आये हुये राजाओ का परिचय कराती हुई धातृ बोली हे कृशांगी । तेरी प्राप्ति का इच्छुक चन्देरी पति शिशुपाल राधा वेधने के लिए दौड़ता दौडता आया किन्तु यह भी विफल रहा । हे कमल नयनी, अब दुर्योधन द्वारा प्रेरित हुवा उसका मित्र अगराज कर्ण आ रहा है। यह वही महान् धर्नु धारी योद्धा है जिसने परीक्षा मडप में अजुन को चुनौती दी थी। अतः अवश्य ही लक्ष्य वेध करेगा।। धातु के यह शब्द द्रोपदी के हृदय में बाण की तरह चुभ गये। उसका मुख मण्डल मुर्मा गया । दुखित हुई वह विचार करने लगी-"यदि यह राधा वेध करने में समर्थ हो गया तो पिताजी की प्रतिज्ञानुसार अवश्य ही मेरा वरण करेगा । यह उचित नहीं, मेरा मन नहीं मानता कि वह सूत पुत्र के हाथों में जाये।" इस प्रकार मन ही मन इस अनिष्ट को टालने लियो तथा अजुन को पाने के लिए अपने इष्ट देव से प्रार्थना करने लगी। इतने में ही द्रोपदी के मुख पर आये हुये चिन्ता के भावों को जान धात बोल उठी "हे सुमध्यमे | इष्ट देव के प्रभाव से कर्णराज लक्ष्य वेध में सफल न हो सका। अत चिन्तातुर होने की आवश्यकता नहीं।" इधर कर्ण को श्लक्ष्य वेध में असफल देख दुर्योधन झुमला कर उठा और अपनी मूछों पर ताव देता हुवा धनुष के पास आया और नमस्कार कर धनुष को चढाने की चेष्टा को किन्तु सफल न हो सका। हे स्वामिनी । महाबली दुर्योधन के धनुष को नमस्कार करने पर माता गान्धारी अत्यन्त हर्षितहुई किन्तु उसके असफल होने पर चिन्तातुर १कर्ण के सम्बन्ध में ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि उसने धनुप चढा दिया और ज्यो ही लक्ष्य वेध करने लगा कि द्रोपदी ने घोषणा कर दी कि सूतपुत्र के साथ वह कदापि विवाह न करेगी। कही ऐसा लिखा है कि धनुष चढाते समय हाथ से केतन छूट गया अत असमर्थ रहा ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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