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________________ ५६६ जैन महाभारत थी। उन्हें वहां ठहरा दिया गया। ___ सभी नृपों के पहुँच जाने पर उनके समय यापन अथवा मनोरंजन के लिये मडप में कला प्रदर्शन का आयोजन चलता रहा जिसमें नत्य, गान, तथा मल्ल युद्ध आदि अनेक प्रदर्शन हुए। कहते हैं कि यह आयोजन दो सप्ताह तक रहा। ___ इसी बीच महाराज द्र पद के हृदय में एक परिवर्तन आया । उस परिवर्तन का मूल कारण था पूर्व प्रतिशोध भावना का उदित होना। क्योंकि द्रोणाचार्य द्वारा किया गया अपमान उनके हृदय में कॉटे की भाँति चुभ रहा था । अत इस उचित अवसर को पाकर उन्होने उनसे बदला लेने का निश्चय कर लिया। इसलिए उन्होने एक वज्रमय धनुष की शर्त रखी. उसका यही रहस्य था कि जो इस धनुष से चक्रों पर पर स्थित राधा को वेध देगा वही अत्यन्त पराक्रमी पुरुष है जो मेरे शत्रु को दमन करने में सफल हो सकेगा। तदनुसार मडप के मध्य स्थित वेदिका पर एक वृहदाकार धनुष रखा गया तथा ऊपर की ओर एक राधा लटकाई गई जिसके नीचे एक बड़ा , चक्र तथा अन्य छोटे चार चक्र जो विपरीत दिशा में घूमते थे लगाये गये । नीचे एक तैल से भरा हुआ कड़ाह रखा गया जिस में चक्रो का प्रतिबिम्ब पड़ रहा था। उसी में देख कर ही राधा को वेधना था।x __यथा समय महाराज द्रपद ने दूत द्वारा कृष्ण, पाण्डु, सहदेव आदि समस्त नृपों को मंडप में एकत्रित होने की सूचना भेज दी । तदनुसार अपने अपने सिंहासनों को सभी राजाओं ने ग्रहण किया। उन बैठे हुए मतिमान् तेजस्वी, कामदेव स्वरूप, दर्पदय आदि गुण सम्पन्न राजा-राजकुमारों की शोभा देखते ही बनती थी। फिर उन में स्कन्ध भाग पर धनुष-वाण धारण किये हुए उस धनुर्धारी अर्जुन की शोभा तो निराली ही थी, मानो वह साक्षात वीररस की प्रतिमूर्ति ही है, अथवा वों कहे कि धनुर्धारियों के मद के हरने को स्वय धनुर्वेद ही आ उपस्थित हुये है जिसे देखते हुए ऑखे अघाती न थीं। धनुष तथा राधावेध आदि की शर्त का उल्लेख पागम भे, त्रिषष्ठिचरित्र * एव नेमनाथ चरित्र में नही पाया जाता फिर भी पाहव चरित्र में आये वर्णन के अाधार पर तथा प्रचलित द्रुपद प्रतिज्ञा पूर्ति के प्रसग से दिया गया है ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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