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________________ रुक्मणि मंगल ४५६ ....... rrrकभी सुखदायक नहीं हो सकता । और ज्योतिषियों ने भी किसी बात को विचार कर ही कहा होगा। आखिर तुम्हे इतनी जल्दी ही क्या है। इस तिथि को छोड टो कोई और तिथि निश्चित कर लो। किसी तरह भीष्मक नृप की भी सहमति प्राप्त करने की योजना बनाओ।" भाभी बोली। ___ "भीमक की बात उनके घर की है। हमे उससे क्या मतलब । रही ज्योतिपियों की बात, सो वे तो यू ही बक दिया करते हैं । दम ज्योतिपियों को एक ही बात पर विचार देने को कहो, कोई कुछ कहेगा, कोई कुछ ।' शिशुपाल बोला। ___"नहीं, ज्योतिषियों को बुलाकर तुम भी तो पूछो । यदि वे भी यही बात कहें जो कुन्दनपुर के ज्योतिषियों ने बताई है तो विवाह की तिथि बदल लेना।" भाभी ने सम्मति दी। ___ "अच्छा लो, तुम्हारा भी बहम मिटाता हू।" इतना कह कर उसने ज्योतिषियों को बुलवाया और लग्न दिखाया । ज्योतिषियों ने विचार करके बताया कि-हे राजन् । आपके लिए यह लग्न शुभ नहीं है । बल्कि कन्या की कुण्डली बता रही है कि उसका विवाह आपके साथ नहीं हो सकता । विवाह में अवश्य ही विघ्न पड़ेंगे और आपको पराजित होना पड़ेगा।" शिशुपाल को ज्योतिषियों की बात बडी कडवी लगी, वह क्रोध में आ गया और उसने उनके पाथी पत्रे को उठा कर फेक दिया और बोला-'इम विषाद को कोई नहीं रोक सकता । तुम सब झूठ घरते हो।' ____ उसकी भाभी ने ज्योतिपियों की भविप्य वाणी सुनकर कहा-"मेरे विचार सं तुम्हें लग्न पापिम कर देना चाहिए । तुम यहाँ से सज धज फर गा पार खाली हाथ निराश हो कर लौट आये तो कितनी लज्जाजनक बात होगी, तनिक तुम श्राप ही सोचो।' ___नहीं भाभी म:मी तिथि को विवाह कर गा। मेरी प्रतिता है । में पहल नटी सकना ।' निशुपाल उच्च स्तर ने बोला।। दिनानिधि पर विवाद करने की प्रनिसा तुमने कर ली है तो पलो दिमी पर पन्या ने करावे देता है। मेरी छोटी बहन है उसी में पिवार पर शशुपाल की भाभी न पहा ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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