SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन महाभारत के लिए उपयुक्त वर की खोज में हैं, पर कोई मिल ही नहीं रहा।" श्रीकृष्ण के मन में उसी समय रुक्मणि के साथ विवाह करने को इच्छा जागृत हुई । वलराम पर भी बात प्रगट हो गई और उसी समय रुक्मणि को श्रीकृष्ण के लिए मांगने का सन्देश १बलराम ने कुन्दनपुर भिजवा दिया था। इसी सन्देश के कारण भीष्म जी ने अपने परिवार से इस सम्बन्ध में चर्चा की थी, पर हठवादी रुक्म के कारण उन की एक न चली थी। घर में ही विवाद हॉ, तो उधर शिशुपाल रुक्म का पत्र हाथ मे लिए महल मे गया, उसकी भाभी ने उसका उल्लास पूर्ण चेहरा देख कर कहा---- "क्या बात है आज बड़े प्रसन्न दिखाई देते हो ?" "भाभी हर्ष की बात ही है। आज हमारा लग्न आया है।" "कहा से ?" "कुन्दनपुर से । विदर्भ नरेश भीष्म की कन्या रुक्मणि के लिए।" "अच्छा ? क्या वास्तव में ?" भाभी ने आश्चर्य चकित होकर पूछा। "लो पढ़ लो यह चिट्ठी।" इतना कहकर उसने रुक्म का पत्र भाभी को थमा दिया। भाभी ने पत्र पढ़ा । और बोली-"पर इस लग्न की तिथि के सम्बन्ध में तो ज्योतिषियो की भविष्य वाणी है कि विवाह मे विघ्न पड़ेगा और पत्र में साफ लिखा है कि भीष्म इस विवाह के पक्ष में नहीं है।" भीष्म कुछ कहे, इससे हमे क्या, बुड्ढा है मस्तक विगड़ गया है, ग्वाले के साथ अपनी कन्या का विवाह करके कुल पर कलंक लगाना चाहता है । यह उसका पागलपन नहीं तो और क्या है ?-हमारे पास तो जिसने लग्न भेजा हमे तो उससे ही मतलब है । रही लग्न और मुहूते की बात । सो जिसके हाथ में शक्ति होती है वे इनकी चिन्ता — नहीं किया करते।" शिशुपाल बोला। "फिर भी जिस विवाह में कन्या के पिता की ही सम्मति न हो वह १ नारद ऋषि से सूचना पाते ही श्रीकृष्ण ने एक दूत रुक्मणि की याचना के लिए कुमार रुक्मन के पास भेजा, और उसने इन्कार कर दिया । त्रिषष्ठि०
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy