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________________ । रुक्मणि मगल गए । १उन्होंने पूछा-"महाराज | यह कृष्ण कौन हैं ?" "अरे । तुम नहीं जानते ' साक्षात् देवता स्वरूप श्री कृष्ण को " भीष्मक ने इकार में सिर हिला दिया । नारद बाले-"व हैं द्वारिकाधीश, वसुदेव के सुपुत्र, जिन्होंने कस का महार किया, पूतना को मारा, केशी और अरिष्ट वृषभ को बिना किसी अस्त्र शस्त्र के ही निष्प्राण किया, जिन के लिए देवताओं ने द्वारिका नगरी वसाई । जो पांचजन्य व गदा कौमुदी धारी हैं और सुदर्शन चक्र जिनका विशेष अस्त्र होगा। रुपवान् , गुणवान, कुलवत कांतिवान, चरित्रवान ओर पुण्यवान श्रीकृष्ण समुद्रविजय के कुलरत्न है । उस समुद्रविजय के जिन के घर वाईसवे तीर्थदर श्रीअरिष्टनेमि जन्म ले चुके है। उनका सारा कुल ही श्रेष्ठ है। इसी प्रकार कितनी ही प्रशसाए श्रीकृष्ण और उनके कुल की उन्होने की । और उसके पश्चात् योले-तुम्हारी कन्या भी उन्हीं के योग्य है । यदि श्रीकृष्ण इस रूपवती के पति बनना स्वीकार कर लेते हैं तो फिर आप समझ लें कि आप की कन्या भी धन्य हो गई। मैने इसी लिए तो सकुमारी को सोच समझ कर यह आशीर्वाद दिया है। श्रीकृष्ण की प्रशसाए सुन कर रुक्मणि मन ही मन कामना करने लगी कि व कृष्ण ही उसके स्वामी बने । भीमकजी को भी वात जच गई और उसी समय वे मन ही मन निश्चय कर बैठे कि रुक्मणि का विवाह श्रीकृष्ण के साथ ही करेंगे। इधर नारद जी के रुक्मणि का एक चित्र लिया और द्वारिका पहचे। वे श्रीकृष्ण के पास जा कर बातचीत करने लगे और उस चित्र को बार घार देखते फिर छुपा लते । श्रीकृष्ण ने भी उस चित्र को देखा और मनि जी से माग कर वे एक टक उसे देखते ही रह गए। मुनिवर समझ गए कि श्रीकृष्ण के हृदय में इस के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया है। भीकृष्ण ने पृटा-"मुनि जी । यह किस देवागना का चित्र है।" "देवाना का नहीं। विदर्भ देश के राजा भीमक महाराज की कन्या सामगि का चित्र है । वह पड़ी ही रूपवान और मृद स्वभाव की कन्या माजान लक्ष्मी है। नारद जी बाले आजकल भीप्मक इस { गमगि ने पूना। प्रिाष्टि
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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