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________________ ४५६ जैन महाभारत mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm की पत्नी रूप में आ जाय तो सत्यभामा जीवन भर मन के अन्दर चुभे कांटे को न निकाल पायेगी। और उसके मन में कुढ़न तथा द्वष, की ज्वाला धधकती रहेगी जिससे उसे कभी भी चिन्ताओं से मुक्ति नहीं मिलेगी। ___ इतना सोचना था कि अपनी योजना को क्रियात्मक रूप देने के लिए चल पड़े। वे कितने ही देशों में घूमे पर उन्हें कोई ऐसी नारी न मिली जो रूप में सत्यभामा से अधिक हो। वे चाहते थे ऐसी कुमारी, जो सत्यभामा से अधिक सुन्दर हो, ताकि श्रीकृष्ण उस पर मुग्ध हो जाय और वे स्वय ही उसे अपनी पत्नी के रूप में ले जाये। इसलिए वे एक सर्वांग सुन्दरी की खोज में थे। अनायास ही एक बार उन की दृष्टि रुक्मणि पर पड़ी। उसके रूप, यौवन और लावण्य को देख कर नारद ने समझ लिया कि यह है वह सुन्दरी जिसे ये अपनी योजना की पूर्ति के लिए प्रयोग कर सकते हैं। उन्होने पता लगाया कि वह कौन है ? किस की कन्या है। और पता लगाकर भीष्मक नृप के पास पहुँचे। नारद जी को देख कर भीष्मक सिंहासन से उतर कर उनके सत्कार के लिए आगे बढ़े, उनको प्रणाम किया। उन्होंने पूछा-"राजन् ! कहो कुशल तो है ?" "आपकी दया है।'' भीष्म बोला । "घर में सुख और शांति तो है ?" "कृपा है !" "सन्तान की क्या दशा है ?', "चार पुत्र है एक कन्या है। सभी शांति पूर्वक जीवन व्यतीत कर "कन्या का विवाह हो गया ?" "नहीं तो, महाराज ! वह विवाह योग्य तो हो गई है। अब उपयुक्त वर की खोज है।" भीष्मक बोले। . इतने ही मे रुक्मणि आ निकली। भीष्म जी ने पुत्री को नारद मुनि को प्रणाम करने संकेत किया । रुक्मणि ने शीश झुका कर प्रणाम किया। नारद ने आशीर्वाद दिया--- अहो ! कृष्ण वल्लभा।" नारदजी के इस आशीर्वाद को सुन कर भीष्मक आश्चर्य चकित रह
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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